गोपाष्टमी का श्राप
गोपाष्टमी का श्राप
कहानी इस तरह शुरू हुई कि इंदिरा गाँधी, करपात्री जी महाराज के पास आशीर्वाद लेने गई तब करपात्री जी ने कहा आशीर्वाद तो दूँगा लेकिन सरकार बनते ही पहले गौ हत्या के विरुद्ध कानून बना कर गौ हत्या बंद करनी होगी। इंदिरा ने हामी भरी, दो महीने बाद करपात्री जी इंदिरा से मिले, उनका वादा याद दिला कर गौ हत्या के विरुद्द कानून बनाने के लिए कहा तो इंदिरा जी ने कहा कि महाराज जी अभी तो मैं नई हूँ, कुछ समय दीजिए। कुछ समय बाद करपात्री जी फिर गए और कानून की मांग की लेकिन इंदिरा ने फिर टाल दिया। कई बार मिलने वादा याद दिलाने के बाद भी जब इंदिरा ने गौ हत्या बंद नहीं की, कानून नहीं बनाया तो 7 नवम्बर 1966, उस दिन कार्तिक मास, शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि, देश का संत समाज, शंकराचार्य, अपने छत्र आदि छोड़ पैदल ही, आम जनता के साथ, गायों को आगे कर संसद कूच किया।करपात्री जी के नेतृत्व में जगन्नाथपुरी, ज्योतिष पीठ व द्वारका पीठ के शंकराचार्य, वल्लभ संप्रदाय के सातों पीठों के पीठाधिपति, रामानुज संप्रदाय, मध्व संप्रदाय, रामानंदाचार्य, आर्य समाज, नाथ संप्रदाय, जैन, बौद्ध व सिख समाज, निहंग व हजारों की संख्या में नागा साधुओं को पंडित लक्ष्मीनारायण जी चंदन तिलक लगाकर विदा कर रहे थे। लालकिला मैदान से आरंभ होकर चावड़ी बाजार होते हुए पटेल चौक से संसद भवन पहुंचने विशाल जुलूस ने पैदल चलना आरंभ किया। रास्ते में घरों से लोग फूल वर्षा रहे थे। हिंदू समाज के लिए ऐतिहासिक दिन था, सभी शंकराचार्य और पीठाधिपति पैदल चलते हुए संसद भवन के पास मंच पर समान कतार में बैठे। उसके बाद से आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ। नई दिल्ली का पूरा इलाका लोगों की भीड़ से भरा था। संसद गेट से लेकर चांदनी चौक तक सिर ही सिर दिखाई दे रहे थे। कम से कम 10 लाख लोगों की भीड़ जुटी थी, जिसमें 10 से 20 हजार तो केवल महिलाएं ही शामिल थीं। जम्मू-कश्मीर से लेकर केरल तक के लोग गौ हत्या बंद कराने के लिए कानून बनाने की मांग लेकर संसद के समक्ष जुटे थे। उस वक्त इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी और गुलजारी लाल नंदा गृहमंत्री थे। इस सिंहनाद को देख कर इंदिरा ने सत्ता के मद में चूर होकर संतों, साधुओं, गायों और जनता पर अंधाधुंध गोलियों की बारिश करवा दी, हजारों गाय, साधु, संत और आमजन मारे गए। गौ रक्षा महाभियान समिति के तत्कालीन मंत्रियों में से एक और पूरी घटना के गवाह, प्रसिद्ध इतिहासकार एवं लेखक आचार्य सोहनलाल रामरंग के अनुसार इस गोलीबारी में कम से कम 10 हजार से अधिक मार दिये गये। इंदिरा ने ढकने के लिए ट्रक बुलाकर मृत, घायल, जिंदा सभी को उसमें ठूंसा जाने लगा। जिन घायलों के बचने की संभावना थी, उनकी भी ट्रक में लाशों के नीचे दबकर मौत हो गई। आखिरी समय तक पता ही नहीं चला कि सरकार ने उन लाशों को कहां ले जाकर फूंक डाला या जमीन में दबा डाला। पूरे शहर में कर्फ्यू लागू कर दिया। तब करपात्री जी महाराज ने मरी हुई गायों के गले से लिपट कर रोते हुए कहा था कि "हम तो साधु हैं, किसी का बुरा नहीं करते लेकिन तूने माता समान निरपराध गायों को मारा है, जा इसका फल तुझे भुगतना पड़ेगा, मैं श्राप देता हूँ कि एक दिन तेरी देह भी इसी प्रकार गोलियों से छलनी होगी और तेरे कुल और दल का विनाश करने के लिए मैं हिमालय से एक ऐसा तपस्वी भेजूँगा जो तेरे दल और कुल का नाश करेगा"। जिस प्रकार करपात्री जी महाराज का आशीर्वाद सदा सफल ही होता था उसी प्रकार उनका श्राप भी फलीभूत होता था। इस घटना की चर्चा गावँ गावँ में बच्चे बच्चे की जुबान पर थी और सभी इंदिरा को गालियां, बददुआएं दे रहे थे कि "हत्यारी ने गायों को मरवा दिया इसका भला नहीं होगा, भगवान करे ये भी इसी प्रकार मरे। भगवान इसका दंड जरूर देंगे"। अब इसे संयोग कहेंगे या करपात्री जी महाराज का श्राप कि इंदिरा का शरीर ठीक गोपाष्टमी के दिन उसी प्रकार गोलियों से छलनी हुआ जैसे करपात्री जी महाराज ने श्राप दिया था। सोचिये क्या ये संयोग है ? 1- संजय गांधी मरे आकाश में तिथि थी गोपाष्टमी , 2- इन्दिरा गाँधी मरी आवास में तिथि थी गोपाष्टमी, 3- राजीव गाँधी मरे मद्रास में तिथि थी गोपाष्टमी साधु संतों का श्राप व गौमाता की करुण पीड़ा ने इंदिरा को मारा। |