भगवान श्री कृष्ण: "वृक्ष हम सब की प्रेरणा का श्रोत हैं"
भगवान श्री कृष्ण अपने मित्रों को वृक्ष की तरह भाग्यवान होने को कहते हैं।
प्रस्तुत हैं भागवद पुराण के कुछ श्लोक जो भगवान कृष्ण ने कहे।
अनुवाद :
तब श्री शुकदेव जी ने कहा: प्रिय परीक्षित! एक दिन भगवान श्रीकृष्ण बलरामजी और ग्वालबालों के साथ गौएँ चराते हुए वृन्दावन से बहुत दूर निकल गए। सूर्य की किरणें बहुत प्रखर थीं। पर घने वृक्ष छत्ते का काम कर रहे थे।
तब भगवान ने अंशु, श्रीदामा, सुबल, देवप्रस्थ, वरुथप, आदि ग्वालबालों को संबोधित करते हुए कहा :
मेरे प्यारे मित्रों! देखो ये वृक्ष कितने भाग्यवान हैं! इनका सारा जीवन केवल दूसरों की भलाई के लिए ही है। में कहता हूं इन्ही का जीवन सबसे श्रेष्ठ है। क्योंकि इनके द्वारा ही सब प्राणियों को सहारा मिलता है। जैसे किसी सज्जन पुरुष के घर से कोई याचक खाली हाथ नहीं लौटता, वैसे ही वृक्षों से सभी को कुछ न कुछ मिल ही जाता है। वृक्ष खुद दुःख सह कर भी महान व्यक्तियों की भांति सब की जरूरतों को पूरा करते हैं।
मेरे प्यारे मित्रों। जीवन की सफलता इतने में है कि जहां तक हो सके अपने धन से, विवेक-विचार से, वाणी से और अपने प्राणों से भी ऐसे कर्म किये जायें जिससे दूसरों की भलाई हो। ये वृक्ष वर्षा, धूप, ठंडक, गर्मी आदि सह कर भी हमें शरण देते हैं। वे अपने पत्ते, फूल, फल, छाया, जड़, छाल, लकड़ी ही नहीं सुगंध, रस, राख और अँकुर भी प्रदान करते हैं।
इस प्रकार संवाद करते हुए, टहनिओं, पत्तों, फूल एवं फलों से झुके वृक्षों में विचरण करते हुए वे सभी यमुना तट पर निकल आये। राजन! यमुना जी का जल बड़ा ही मधुर, शीतल और स्वच्छ था। उन्होंने पहले गौओं को पिलाया फिर खुद भी उस मधुर जल का पान किया।
*श्रीमद भागवद पुराण : श्लोक 10.22.29-38
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